Contact Us

Saturday, 18 April 2009

पर तरस गई हूँ !


तेरी
 उँगलिओ के स्पर्श को
जो चलती थी मेरे बालो मे

तेरा
वो चुम्बन
जो अकसर  करती थी
तुम मेरे गालो पे

वो 
स्वादिष्ट पकवान
जिसका स्वाद 
नही पहचाना मैने इतने सालो मे

वो मीठी सी झिडकी
वो प्यारी सी लोरी
वो रूठना - मनाना
और कभी - कभी
तेरा सजा सुनाना
वो चेहरे पे झूठा गुस्सा
वो दूध का गिलास
जो लेकर आती तुम मेरे पास

मैने पिया कभी आँखे बन्द कर
कभी गिराया तेरी आँखे चुराकर

 आज कोई नही पूछता ऐसे
???????????????????
तुम मुझे कभी प्यार से
कभी डाँट कर खिलाती थी जैसे


******************************************

नि:शब्द है

वो सुकून
जो मिलता है 
माँ की गोदि मे
सर रख कर सोने मे

वो अश्रु 
जो बहते है
माँ के सीने से
चिपक कर रोने मे

वो भाव
जो बह जाते है अपने ही आप

वो शान्ति
जब होता है ममता से मिलाप

वो सुख
जो हर लेता है
सारी पीडा और उलझन

वो आनन्द
जिसमे स्वच्छ 
हो जाता है मन

Friday, 10 April 2009

कितनी बदल गयी तुम माँ !

माँ ! इस एक शब्द में प्यार, परवरिश , प्रेरणा का सागर समाया हुआ है. यह सागर सदियों से लहराता रहा है और आगे भी लहराता रहेगा. पर वक़्त के साथ लहरों की लय में भी बदलाव आया है. बदलते वक़्त ने बहुत कुछ बदल दिया है. समाज बदल गया, बच्चे की रूचियां और प्राथमिकताएं बदल गयी, तो ऐसे में माँ अपने को बिना बदले कैसे सब कुछ संभल सकती है. मात्र, माँ, अम्मा, मम्मी से मॉम तक सिर्फ संबोधन ही नहीं, माँ की भूमिका भी काफी बदल गयी है.

  • माँ बदल रही है. अपने बच्चे से तो वह आज भी पहले जितना ही प्यार करती है, पर अब हर काम को पूरा करने के लिए वह पापा का इन्तजार नहीं करती. माँ ऑफिस जाने लगी है. वह कंपनी चलने लगी है और बच्चे के कदम से कदम मिलाकर चलना भी उसने सीख लिया है..
  • जिस छण बच्चे का जन्म होता है, उसी समय माँ भी जन्म लेती है. उससे पहले माँ का अस्तित्व नहीं होता. महिला का अस्तित्व तो होता है,पर माँ का नहीं. माँ बिलकुल नयी होती है.
  • इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, माँ जब गुस्से में होती है तो रो देती है.
  • माँ अपने विचारो में भी अकेली नहीं होती. माँ को हमेशा दो बार सोचना पड़ता है, एक बार अपने लिए और दूसरी बार अपने बच्चे के लिए.
  • वह माँ खुशकिश्मत है, जिसकी अपनी पह्व्हान है. जिसके नेक कामो से लोग उससे जानती है. पर सबसे खुशकिश्मत तो वह माँ है, जिसकी औलाद उसका नाम दुनियाभर में रोशन करे.

"बेसन की सोंधी रोटी"

बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ

बान की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोयी आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ

चिडियों की चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अली
मुर्गे की आवाज से खुलती
घर की कुण्डी जैसी माँ

बीबी बेटी बहन पडोसन
थोडी थोडी सी सब में
दिनभर एक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ

बाँट के अपना चेहरा माथा
आँखे जाने कहाँ गयीं
फटे पुराने एक एल्बम में
चंचल लड़की जैसी माँ.