क्या कहूँ माँ कैसी होती है ,
आँखों में जिसके सारा आसमान होता है ,
और क़दमों में जन्नत होती है .
खुद के दुख को ख़ुशी समझ लेती है .
छुपाये रखती है खुद के दर्द और ज़ख्मों को .
और कोई शिकवा भी है तो ज़ाहिर नहीं करती .
हमारे दर्द में खुद का दामन आंसुओं से भिगोती है .
बच्चों की खातिर बुराई सारे जहाँ से मोल लेती है .
उसकी ममता और मोहब्बत को क्या कहें .
उनकी जान तो औलाद के खातिर , क़ुरबानी के लिए तैयार रखती है .
औलाद कैसी भी हो माँ तो माँ आखिर होती है .
चाहे फिर प्यार करे या डांटे .
अगर मारती भी है , तो चोट उसी के दिल पर लगती है .
ऐसी होती है माँ ,जिसको करते हैं हम हर जनम सलाम .
Bhawna pradhan vicharniy aur manniy rachna....Badhaayii
ReplyDeletemaa ..... kahte poori srishti vatsalyamayi ho jati hai
ReplyDeleteबहत सुन्दर ......माँ पर कुछ भी लिखो कम ही है
ReplyDeletesach hai maa par kch bhi likho kam hai....
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