माँ शब्द उच्चारते ही लबखुल जाते हैं, मानो कह रहे हों, लो दिल की दरीचे खुल गए , अब भावनाओ की गांठे खोल दो, बहने दो मन को माँ जो सामने है |
Friday, 5 June 2009
प्यारो से परेशानी कैसी ?
वह एक युवा माँ थी| उसके होंठो पर हँसी तैरती रहती थी और आँखों में मुस्कान नज़र आती थी| दो छोटी परछाइयां उसके आगे-पीछे नाचती रहती थी| वह जहा भी जाती, ये परछाईया उसके साथ रहतीं| उसका पल्लू पकड़े-पकड़े, उसकी कुर्सी पर झूलते हुए, कभी आगे, कभी पीछे, मटरगश्ती करते| दो चिपकी परछाइयां| किसी ने उनसे पूछा, "क्या तुम्हे खीझ नही होती, चिढ नही मचती? हर दिन तुम्हारे ये दो पुछल्ले तुम्हारे रास्ते में आते रहते है|"
वह हँसी और उसने अपने सुंदर से चेहरे पर झंकार के भाव बनाए| फ़िर उसने जो शब्द कहे, वह सुनने वाले को हमेशा याद रहे| शायद आप भी उन लफ्जो को भूल न पायेंगे| उस युवा माँ ने कहा, "ऐसी नन्ही परियां होना अच्छी बात है, जो आपके साथ दौडे, जब आप खुश हों, तो वे हँसे, जब आप गुनगुनाये तो साथ में वो भी गुनगुन करे| खीझने का तो सवाल ही नही उठता, क्योंकि आपके पास ऐसी परछाइयां तभी हो सकती है, जब आपकी जिन्दगी सूरज की तपन तले हो|"
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जो भावनाएं सूरज के तपन तले विस्तार पाती हैं, उनको कैसा मार्ग दर्शन......इस सोच में सत्य है, मासूमियत और प्यार है ,
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
.बहुत अच्छी प्रस्तुति।
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