माँ !
शहर नहीं, सड़क नहीं,
तू हमारा गाँव थी ।
पीपल, बरगद, पाकड़,
तू नीम की छाँव थी ।
माँ !
गीता, कुरान थी ,
गुरु ग्रन्थ शब्द ज्ञान थी ।
तू घर की शान थी ।
आन, मान , अभिमान थी ।
माँ!
जीवन एक संघर्ष है,
दिए तुने सन्देश ।
हमे छोड़ कर चली गई,
अब यादे है शेष ।
तुझसे सुंदर लगता था,
हमे यहाँ जमाना ।
वृन्दावन लगता था,
घर आँगन सुहाना ।
माँ!
जीवन की बरसात में,
बन जाती थी छाता ।
पति, पुत्री , पुत्र से,
सचमुच का था नाता ।
No comments:
Post a Comment