गोरी से पीली,
पीली से काली हो गई है अम्मा
इक दिन मैंने देखा
सचमुच बूढ़ी हो गई है अम्मा
कुछ बादल बेटे ने लूटे,
कुछ हरियाली बेटी ने
एक नदी थी,
कहाँ खो गई रेती हो गई है अम्मा
देख लिया है सोना-चांदी
जब से उसके बक्से में
तब से बेटों की नज़रों में
अच्छी हो गई है अम्मा
कल तक अम्मा-अम्मा कहते
फिरते थे जिसके पीछे
आज उन्हीं बच्चों के आगे
बच्ची हो गई है अम्मा
घर के हर इक फ़र्द की आँखों में
दौलत का चश्मा है
सबको दिखता वक़्त कीमती
सस्ती हो गई है अम्मा
बोझ समझते थे सब
भारी लगती थी लेकिन जबसे
अपने सर का साया समझा,
हल्की हो गई है अम्मा।
बेहतरीन...
ReplyDeleteभाव विभोर हो गए यह कविता पढ कर...
घर के हर इक फ़र्द की आँखों में
ReplyDeleteदौलत का चश्मा है
सबको दिखता वक़्त कीमती
सस्ती हो गई है अम्मा
sachche shabd
maa par likhi gayi kavita...dil ko chu gayi!
ReplyDeletebahut accha laga padhkar..
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
ReplyDeleteआपकी रचना पर इतना ही कहना चाहूँगा की :
ReplyDelete"माँ " मै चल सकता हूँ आज तेरी अंगुली पकडे बिना , पर अब गिरने का बहुत डर लगता है ...
हल्की हो गई है अम्मा।
ReplyDeleteइस हल्केपन में कितना भारीपन है -- है ना.
बहुत सुन्दर