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Saturday, 17 April 2010

मेरी जिन्दगी मेरी माँ है !


जिन्दगी की तपती धूप में एक ठंडा साया पाया है मैंने,
जब खोली आँख तो अपनी माँ को मुस्कराता हुआ पाया है मैंने,

जब भी माँ का नाम लिया,ओश का बेशुमार प्यार पाया है मैंने,
जब कोई दर्द महसूस हुआ, जब कोई मुश्किल आई,

अपने पहलों में अपनी माँ को पाया है मैंने,
जागती रही वो रात भर मेरे लिए,जाने कितनी रातें,

उससे जगाया है मैंने,
जिन्दगी के हर मोड़ पर, जब हुई गुमराह मैं,

इसकी हिदायत पर, पकड़ ली सीधी राह मैंने,
जिसकी दुआ से हर मुसीबत लौट जाये,

ऐसा फरिस्ता पाया है मैंने,
मेरी हर फ़िक्र को जानने वाली,

मेरे जज्बातों को पहचानने वाली,
मेरी जिन्दगी सिर्फ मेरी माँ है,इसी के लिए तो,

इस जिन्दगी की शमा जला राखी है मैंने।

4 comments:

  1. माँ के प्रति बहुत प्यार है आपकी कविता में

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  2. यादें ताजा हो गयी माँ की जेहन में, माँ से दूर जो ठहरा।

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  3. एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

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  4. आपने मां के प्रति अपने प्यार को शब्दों में बड़ी सुन्दरता से प्रकाश किया है !

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