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Thursday 16 October 2008

यह कहानी एक बेटी के संकल्प की कहानी है। अपनी माँ को श्रद्धांजलि देने का उसने वह तरीका चुना की सम्पूर्ण विश्व उसके पड़ चिह्नों पर चल रहा है। मदर्स-डे की प्रणेता ऐना जारविस ने अपना पूरा जीवन मदर्स-डे को मान्यता दिलाने के लिए समर्पित कर दिया और आज वे 'मदर ऑफ़ मदर्स-डे' के नाम से जानी जाती है।

ऐसे मिले प्रेरणा:-
ऐना जावरिसका जन्म १ मई १८६४ को पश्चिमी वर्जीनिया में हुआ। ग्यारह भाई-बहनों के बड़े परिवार में उनका क्रम नवां था। मदर्स-डे का विचार ऐना के मन में किस तरह अंकुरित हुआ, इसके पीछे एक रोचक घटना है। ऐना तब महज १२ साल की थी। ऐना की माँ ने अपनी बेटी की उपस्थिति में एक पाठ 'मदर्स ऑफ़ बाइबल' पढ़ा। पाठ के पूरा होने पर उन्होंने एक कविता से इसका समापन किया। कविता का भावार्थ कुछ इस तरह था-
"मै उम्मीद करती हूँ की कोई, कभी ऐसे मदर्स-डे की खोज करेसके जो माँ की मानवता के हर क्षेत्र में अद्वितीय सेवाओं के लिए उसका आभार मान सके। वह इसकी हक़दार है।"
नन्ही सी ऐना के मन में ये सब्द गहरे अंकित हो गए और वह इन्हे तौर नही भुला सकी। १९०५ में ऐना की माँ का निधन हो गया। उसे दफनाते वक्त भी ऐना के मन में उसी कविता के शब्द गूँज रहे थे और वह बुदबुदाई, भगवान् ने चाहा तो मदर्स-डे का वह दिन जरूर आएगा। ऐना के भाई क्लौड ने ये शब्द सुने


संघर्ष का सफर:-

ऐना ने निश्चय किया की वह माँ का सपना पूरा करके ही रहेगी और इसके बाद शुरू हुआ असली संघर्स। अमेरिकी बच्चों के द्बारा अपने माता-पिता के प्रति अवहेलना भरे व्यवहार ने उनके संकल्प को और मजबूत किया की कोई सा दिन तय करे, की जो बच्चों को उनके माँ के त्याग और कष्टों का स्मरण कराये। १९०७ में ऐना ने माँ की दूसरी बरसी पर फ़िलदेल्फ़ेआ के चर्च से रास्ट्रीय स्तर पर मदर्स-डे के लिए अभियान आरम्भ किया।