माँ शब्द उच्चारते ही लबखुल जाते हैं, मानो कह रहे हों, लो दिल की दरीचे खुल गए , अब भावनाओ की गांठे खोल दो, बहने दो मन को माँ जो सामने है |
Wednesday 24 November 2010
कैसी होती है माँ !
Monday 18 October 2010
Friday 7 May 2010
माँ की आँखों से दुनिया को देखना !
Wednesday 5 May 2010
माँ इतनी खाश क्यों है ?
Sunday 2 May 2010
माँ मुझे डर लगता है !
कल रात मेरे बिस्तर पर मुझे एक आहट ने चौंका दिया,
माँ और मैं !
- एक हस्ती है जो जान है मेरी, जो आन से बढ़कर मान है मेरी, खुदा हुक्म दे तो कर दूँ सजदा उसे, क्योकि वो कोई और नहीं माँ है मेरी.
- एक दिन माँ से पूछा के माँ के मरने के बाद दुआ कौन करेगा? तो माँ बोली.. समंदर सूखने के बाद भी रेत में नमी रह जाती है.
- माँ तेरी याद सताती है मेरे पास आ जाओ, थक गयी हूँ मुझे अपने आँचल में सुलाओ, उंगलिया अपनी फेर कर बालों में मेरे, एक बार फिर से बचपन की लोरियां सुनाओ.
- फूलों सी सुन्दर है मेरी माँ, सब कुछ है मेरी माँ में, नहीं कुछ भी ज़रूरत मुझे, गम,दर्द दे या ज़हर पिला दे, मैं उसको पूजती हूँ, वो ही मेरी इबादत है.
- माँ से रिश्ता ऐसा बनाया जाये, जिसको निगाहों में बैठाया जाये, रहे उसका मेरा रिश्ता कुछ ऐसा की, वो अगर उदास हो तो हमसे भी मुस्कराया न जाये.
- मन की बात जान ले जो, आँखों से पढ़ ले जो, दर्द हो चाहे ख़ुशी, आंसू की पहचान कर ले जो, वो हस्ती जो बेपनाह प्यार करे, 'माँ' ही तो है वो जो बच्चों के लिए जिए.
- दास्ताँ मेरे लाड़ प्यार की बस, एक हस्ती क इर्द गिर्द घुमती है, प्यार जन्नत से इसलिए है मुझे, क्योकि ये मेरे माँ के कदम चूमती है.
- जब हम बोलना नहीं जानते थे, तब हमारे बोले बिना माँ हमारी बातों को समझ जाती थी, और आज , हम हर बात पर कहते है, छोड़ो माँ आप नहीं समझोगी.
माँ की व्यथा !
थी कितनी प्रफुल्लित मैं उस अनूठे अहसास से,
रच बस रहा था जब एक नन्हा अस्तित्व मेरी सांसों की तार में,
प्रकृति के हर स्वर में नया संगीत सुन रही थी,
अपनी ही धुन में न जाने कितने स्वप्न बुन रही थी,
लम्बी अमावस के बाद पूर्णिमा का चाँद आया,
एक नन्हीं सी कली ने मेरे आंगन को सजाया,
आए सभी मित्रगण, सम्बन्धी कुछ के चहरे थे लटके,
तो कुछ के नेत्रों में आंसू थे अटके,
भांति भांति से सभी समझाते,
कभी देते सांत्वना तो कभी पीठ थपथपाते,
घबराओ नहीं, खुलेगा कभी तुम्हारी किस्मत का भी ताला,
लुप्त हुआ गौरव खो गया आनन्द,
अनजानी पीड़ा से यह सोचकर बोझिल हुआ मन,
क्या हुआ अपराध जो ये सब मुझे कोसते हैं,
दबे शब्दों में, मन की कटुता में मिश्री घोलते हैं,
काश! ममता में होता साहस, माँ की व्यथा को शब्द मिल जाते,
चीखकर मेरी नन्हीं कली का सबसे परिचय यूँ कराते,
Friday 30 April 2010
बच्ची हो गई अम्मा !
गोरी से पीली,
पीली से काली हो गई है अम्मा
इक दिन मैंने देखा
सचमुच बूढ़ी हो गई है अम्मा
कुछ बादल बेटे ने लूटे,
कुछ हरियाली बेटी ने
एक नदी थी,
कहाँ खो गई रेती हो गई है अम्मा
देख लिया है सोना-चांदी
जब से उसके बक्से में
तब से बेटों की नज़रों में
अच्छी हो गई है अम्मा
कल तक अम्मा-अम्मा कहते
फिरते थे जिसके पीछे
आज उन्हीं बच्चों के आगे
बच्ची हो गई है अम्मा
घर के हर इक फ़र्द की आँखों में
दौलत का चश्मा है
सबको दिखता वक़्त कीमती
सस्ती हो गई है अम्मा
बोझ समझते थे सब
भारी लगती थी लेकिन जबसे
अपने सर का साया समझा,
हल्की हो गई है अम्मा।
माँ के आगे सारा जग छोटा है !
Saturday 24 April 2010
माँ और भगवान !
मैं अपने छोटे मुख कैसे करूँ तेरा गुणगान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
माता कौशल्या के घर में जन्म राम ने पाया
ठुमक-ठुमक आँगन में चलकर सबका हृदय जुड़ाया
पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के प्राण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
दे मातृत्व देवकी को यसुदा की गोद सुहाई
ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई
सारे ब्रजमंडल में गूँजी थी वंशी की तान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
तेरी समता में तू ही है मिले न उपमा कोई
तू न कभी निज सुत से रूठी मृदुता अमित समोई
लाड़-प्यार से सदा सिखाया तूने सच्चा ज्ञान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
कभी न विचलित हुई रही सेवा में भूखी प्यासी
समझ पुत्र को रुग्ण मनौती मानी रही उपासी
प्रेमामृत नित पिला पिलाकर किया सतत कल्याण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
'विकल' न होने दिया पुत्र को कभी न हिम्मत हारी
सदय अदालत है सुत हित में सुख-दुख में महतारी
काँटों पर चलकर भी तूने दिया अभय का दान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान
नमन में मन !
आज फिर थिरकते हैं लहरता है बसी हो माँ! |
तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन !
तुम्ही मिटाओ मेरी उलझन
माँ की याद !
जाड़े की जब धूप सुनहरी
अंगना में छा जाती है
बगिया की माटी में तुलसी
जब औंचक उग आती है
माँ की याद दिलाती है
हो अज़ान या गूँज शंख की
जब मुझसे टकराती है
पाँवों तले पड़ी पुस्तक की
चीख हृदय में आती है
माँ की याद दिलाती है
कटे पेड़ पर भी हरियाली
जब उगने को आती है
कटी डाल भी जब कातिल का
चूल्हा रोज़ जलाती है
माँ की याद दिलाती है
अदहन रखती कोई औरत
नन्हों से घिर जाती है
अपनी थाली देकर जब भी
उनकी भूख मिटाती है
माँ की याद दिलाती है
सुख में चाहे याद न हो, पर
चोट कोई जब आती है
सूरज के जाते ही कोई
दीपशिखा जल जाती है
माँ की याद दिलाती है
माँ तू है !
अंधियारी रातों में !
माँ : एक याद
माँ!
याद तो आता नहीं
तुम्हारा
गोदी में वो मुझे झुलाना
दूध का अमृतरस चखाना
झुनझुने से मेरा दिल बहलाना
लोरी का वो गुनगुनाना
माथे को प्यार से चूमना
गुदगुदी से हँस हँस हँसाना
उँगली पकड़ चलना सिखाना
पर
याद है, माँ मुझे
हाथ में उँगली थामें लिखवाना
खून पसीने से मेरे जीवन को सींचना
मुश्किलों में हौसले का बँधाना
प्यार में आँसुओं का छलकना
गम में रोऊँ तो सहलाना
आने चाहे तुफ़ानों को रोक लेना
अंधेरे में रोशनी का दिखलाना
पास ना रहूँ, तो याद में रोना
और फिर वो पल
जब-
माँ बेटी का रिश्ता बना दोस्ताना
माँ के इस प्यार की बेल का
चढ़ते ही जाना
इंद्रधनुषी रंग में जीवन को रंग देना
तुम्हारी हँसी में दुनिया पा जाना
जीवन की है यह ज्योति
जलती रहे निरंतर
आशीश रहे सदा माँ का
असीम है माँ का प्यार!
स्नेहपूर्ण स्पर्श माँ !
माँ तुम्हारा स्नेहपूर्ण स्पर्श
अब भी सहलाता है मेरे माथे को
तुम्हारी करुणा से भरी आँखें
अब भी झुकती हैं मेरे चेहरे पर
जीवन की खूंटी पर
उदासी का थैला टाँगते
अब भी कानों में पड़ता है
तुम्हारा स्वर
कितना थक गई हो बेटी
और तुम्हारे निर्बल हाथों को मैं
महसूस करती हूँ अपनी पीठ पर
माँ
क्या तुम अब सचमुच नहीं हो
नहीं,
मेरी आस्था, मेरा विश्वास, मेरी आशा
सब यह कहते हैं कि माँ तुम हौ
मेरी आँखों के दिपते उजास में
मेरे कंठ के माधुर्य में
चूल्हे की गुनगुनी भोर में
दरवाज़े की सांकल में
मीरा और सूर के पदों में
मानस की चौपाई में
माँ
मेरे चारों ओर घूमती यह धरती
तुम्हारा ही तो विस्तार है।
वो है मेरी माँ !
Saturday 17 April 2010
मेरी जिन्दगी मेरी माँ है !
जब कोई दर्द महसूस हुआ, जब कोई मुश्किल आई,
जागती रही वो रात भर मेरे लिए,जाने कितनी रातें,
जिन्दगी के हर मोड़ पर, जब हुई गुमराह मैं,
जिसकी दुआ से हर मुसीबत लौट जाये,
मेरी हर फ़िक्र को जानने वाली,
मेरी जिन्दगी सिर्फ मेरी माँ है,इसी के लिए तो,
Thursday 15 April 2010
मै सबके बीच अकेली थी !
झाड-पोछकर चूम-चूम गीले गालोंको सुखा दिया,
दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र-नीर युत दमक उठे,
धुलि हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे,
वह सुख का साम्राज्य छोड़कर मै मतवाली बड़ी हुई,
लुटी हुई, कुछ ठगी हुई सी दौड़ द्वार पर कड़ी हुई,
लाजभरी आँखे उमंग मेरे मन में रंगीली थी,
तान रसीली थी कानो में चंचल छैन छबीली थी,
दिल में एक चुभन सी भी थी यह दुनिया अलबेली थी,
मन में एक पहेली थी, मै सबके बीच अकेली थी।