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Wednesday 24 November 2010

कैसी होती है माँ !

क्या कहूँ माँ कैसी होती है ,
आँखों में जिसके सारा आसमान होता है ,
और क़दमों में जन्नत होती है .

खुद के दुख को ख़ुशी समझ लेती है .
छुपाये रखती है खुद के दर्द और ज़ख्मों को .
और कोई शिकवा भी है तो ज़ाहिर नहीं करती .
हमारे दर्द में खुद का दामन आंसुओं से भिगोती है .

बच्चों की खातिर बुराई सारे जहाँ से मोल लेती है .
उसकी ममता और मोहब्बत को क्या कहें .
उनकी जान तो औलाद के खातिर , क़ुरबानी के लिए तैयार रखती है .

औलाद कैसी भी हो माँ तो माँ आखिर होती है .
चाहे फिर प्यार करे या डांटे .
अगर मारती भी है , तो चोट उसी के दिल पर लगती है .
ऐसी होती है माँ ,जिसको करते हैं हम हर जनम सलाम .

Monday 18 October 2010

दिनभर के कठिन परिश्रम के बाद जब मै घर आता हूँ तो..

पिता जी पूछते है : कितना कमाया ?
पत्नी पूछती है : क्या बचाया ?
बच्चे पूछते है : क्या लाये ?
लेकिन केवल
माँ पूछती है : बेटा, 'कुछ खाया' ?

Friday 7 May 2010

माँ की आँखों से दुनिया को देखना !

मेरी माँ की सिर्फ एक ही आँख थी और इसीलिए मैं उनसे बेहद नफ़रत करता था | वो फुटपाथ पर एक छोटी सी दुकान चलाती थी | उनके साथ होने पर मुझे शर्मिन्दगी महसूस होती थी | एक बार वो मेरे स्कूल आई और मै फिर से बहुत शर्मिंदा हुआ | वो मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है ? अगले दिन स्कूल में सबने मेरा बहुत मजाक उड़ाया |

मैं चाहता था मेरी माँ इस दुनिया से गायब हो जाये | मैंने उनसे कहा, 'माँ तुम्हारी दूसरी आँख क्यों नहीं है? तुम्हारी वजह से हर कोई मेरा मजाक उड़ाता है | तुम मर क्यों नहीं जाती ?' माँ ने कुछ नहीं कहा | पर, मैंने उसी पल तय कर लिया कि बड़ा होकर सफल आदमी बनूँगा ताकि मुझे अपनी एक आँख वाली माँ और इस गरीबी से छुटकारा मिल जाये |

उसके बाद मैंने म्हणत से पढाई की | माँ को छोड़कर बड़े शहर आ गया | यूनिविर्सिटी की डिग्री ली | शादी की | अपना घर ख़रीदा | बच्चे हुए | और मै सफल व्यक्ति बन गया | मुझे अपना नया जीवन इसलिए भी पसंद था क्योंकि यहाँ माँ से जुडी कोई भी याद नहीं थी | मेरी खुशियाँ दिन-ब-दिन बड़ी हो रही थी, तभी अचानक मैंने कुछ ऐसा देखा जिसकी कल्पना भी नहीं की थी | सामने मेरी माँ खड़ी थी, आज भी अपनी एक आँख के साथ | मुझे लगा मेरी कि मेरी पूरी दुनिया फिर से बिखर रही है | मैंने उनसे पूछा, 'आप कौन हो? मै आपको नहीं जानता | यहाँ आने कि हिम्मत कैसे हुई? तुरंत मेरे घर से बाहर निकल जाओ |' और माँ ने जवाब दिया, 'माफ़ करना, लगता है गलत पते पर आ गयी हूँ |' वो चली गयी और मै यह सोचकर खुश हो गया कि उन्होंने मुझे पहचाना नहीं |
एक दिन स्कूल री-यूनियन की चिट्ठी मेरे घर पहुची और मैं अपने पुराने शहर पहुँच गया | पता नहीं मन में क्या आया कि मैं अपने पुराने घर चला गया | वहां माँ जमीन मर मृत पड़ी थी | मेरे आँख से एक बूँद आंसू तक नहीं गिरा | उनके हाथ में एक कागज़ का टुकड़ा था... वो मेरे नाम उनकी पहली और आखिरी चिट्ठी थी |

उन्होंने लिखा था :

मेरे बेटे...
मुझे लगता है मैंने अपनी जिंदगी जी ली है | मै अब तुम्हारे घर कभी नहीं आउंगी... पर क्या यह आशा करना कि तुम कभी-कभार मुझसे मिलने आ जाओ... गलत है ? मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है | मुझे माफ़ करना कि मेरी एक आँख कि वजह से तुम्हे पूरी जिंदगी शर्मिन्दगी झेलनी पड़ी | जब तुम छोटे थे, तो एक दुर्घटना में तुम्हारी एक आँख चली गयी थी | एक माँ के रूप में मैं यह नहीं देख सकती थी कि तुम एक आँख के साथ बड़े हो, इसीलिए मैंने अपनी एक आँख तुम्हे दे दी | मुझे इस बात का गर्व था कि मेरा बेटा मेरी उस आँख कि मदद से पूरी दुनिया के नए आयाम देख पा रहा है | मेरी तो पूरी दुनिया ही तुमसे है |

चिट्ठी पढ़ कर मेरी दुनिया बिखर गयी | और मैं उसके लिए पहली बार रोया जिसने अपनी जिंदगी मेरे नाम कर दी... मेरी माँ |

Wednesday 5 May 2010

माँ इतनी खाश क्यों है ?


बारिश में मै जब घर वापस आयी....

भाई ने पूछा, "छाता लेकर क्यों नहीं गयी थे?

दीदी ने सलाह दी, "बारिश रुकने का इन्तजार करती"

पापा ने गुस्से में बोला, "जब ठण्ड लग जाएगी तब मालुम पड़ेगा"

लेकिन

मेरी माँ मेरे बाल सुखाती हुई बोली, "ये बारिश भी न, थोडा देर रुक नहीं सकती थी जब मेरी बेटी घर आ रही थी |

Sunday 2 May 2010

माँ मुझे डर लगता है !


कल रात मेरे बिस्तर पर मुझे एक आहट ने चौंका दिया,
फिर एक नर्म हवा का झोंका मेरी परेशानी को छु गया,
आँख खुली तो माँ को देखा, कुछ हिलते लब कुछ फडफडाते लब,
मैंने धीरे से मुस्करा दिया,
माँ आज भी उठ कर रातों में मेरी परेशानी को चूमती है,
और अपने हिस्से की भी सब दुआएं मुझ पर फूंका करती है,
बस इतना याद है मुझे के,
मैंने बचपन में बस एक बार कहा था,
माँ मुझे डर लगता है.

माँ और मैं !



  • एक हस्ती है जो जान है मेरी, जो आन से बढ़कर मान है मेरी, खुदा हुक्म दे तो कर दूँ सजदा उसे, क्योकि वो कोई और नहीं माँ है मेरी.
  • एक दिन माँ से पूछा के माँ के मरने के बाद दुआ कौन करेगा? तो माँ बोली.. समंदर सूखने के बाद भी रेत में नमी रह जाती है.
  • माँ तेरी याद सताती है मेरे पास आ जाओ, थक गयी हूँ मुझे अपने आँचल में सुलाओ, उंगलिया अपनी फेर कर बालों में मेरे, एक बार फिर से बचपन की लोरियां सुनाओ.
  • फूलों सी सुन्दर है मेरी माँ, सब कुछ है मेरी माँ में, नहीं कुछ भी ज़रूरत मुझे, गम,दर्द दे या ज़हर पिला दे, मैं उसको पूजती हूँ, वो ही मेरी इबादत है.
  • माँ से रिश्ता ऐसा बनाया जाये, जिसको निगाहों में बैठाया जाये, रहे उसका मेरा रिश्ता कुछ ऐसा की, वो अगर उदास हो तो हमसे भी मुस्कराया न जाये.
  • मन की बात जान ले जो, आँखों से पढ़ ले जो, दर्द हो चाहे ख़ुशी, आंसू की पहचान कर ले जो, वो हस्ती जो बेपनाह प्यार करे, 'माँ' ही तो है वो जो बच्चों के लिए जिए.
  • दास्ताँ मेरे लाड़ प्यार की बस, एक हस्ती क इर्द गिर्द घुमती है, प्यार जन्नत से इसलिए है मुझे, क्योकि ये मेरे माँ के कदम चूमती है.
  • जब हम बोलना नहीं जानते थे, तब हमारे बोले बिना माँ हमारी बातों को समझ जाती थी, और आज , हम हर बात पर कहते है, छोड़ो माँ आप नहीं समझोगी.

माँ की व्यथा !

मेरी व्यथा अनकही सही अनजानी नहीं है, मुझ जैसी हज़ारों नारियों की कहानी यही है,


जन्म से ही खुद को अबला जाना,
जीवन के हर मोड़ पर परिजनों ने ही हेय माना,

थी कितनी प्रफुल्लित मैं उस अनूठे अहसास से,
रच बस रहा था जब एक नन्हा अस्तित्व मेरी सांसों की तार में,
प्रकृति के हर स्वर में नया संगीत सुन रही थी,
अपनी ही धुन में न जाने कितने स्वप्न बुन रही थी,

लम्बी अमावस के बाद पूर्णिमा का चाँद आया,
एक नन्हीं सी कली ने मेरे आंगन को सजाया,

आए सभी मित्रगण, सम्बन्धी कुछ के चहरे थे लटके,
तो कुछ के नेत्रों में आंसू थे अटके,
भांति भांति से सभी समझाते,
कभी देते सांत्वना तो कभी पीठ थपथपाते,

कुछ ने तो दबे शब्दों में यह भी कह डाला,
घबराओ नहीं, खुलेगा कभी तुम्हारी किस्मत का भी ताला,

लुप्त हुआ गौरव खो गया आनन्द,
अनजानी पीड़ा से यह सोचकर बोझिल हुआ मन,
क्या हुआ अपराध जो ये सब मुझे कोसते हैं,
दबे शब्दों में, मन की कटुता में मिश्री घोलते हैं,

काश! ममता में होता साहस, माँ की व्यथा को शब्द मिल जाते,
चीखकर मेरी नन्हीं कली का सबसे परिचय यूँ कराते,

न इसे हेय, न अबला जानो 'खिलने दो खुशबू पहचानो' |

Friday 30 April 2010

बच्ची हो गई अम्मा !


गोरी से पीली,
पीली से काली हो गई है अम्मा
इक दिन मैंने देखा
सचमुच बूढ़ी हो गई है अम्मा
कुछ बादल बेटे ने लूटे,
कुछ हरियाली बेटी ने
एक नदी थी,
कहाँ खो गई रेती हो गई है अम्मा

देख लिया है सोना-चांदी
जब से उसके बक्से में
तब से बेटों की नज़रों में
अच्छी हो गई है अम्मा

कल तक अम्मा-अम्मा कहते
फिरते थे जिसके पीछे
आज उन्हीं बच्चों के आगे
बच्ची हो गई है अम्मा

घर के हर इक फ़र्द की आँखों में
दौलत का चश्मा है
सबको दिखता वक़्त कीमती
सस्ती हो गई है अम्मा

बोझ समझते थे सब
भारी लगती थी लेकिन जबसे
अपने सर का साया समझा,
हल्की हो गई है अम्मा।


माँ के आगे सारा जग छोटा है !


चोट लगे तो मेरे तन में,
होती है सच पीर बड़ी
पर माँ की आँखों से धारा,
बह उठती है बहुत बड़ी

लगता माँ का फूलों-सा मन,
अति व्याकुल हो जाता है
इस दुनिया में माँ के मन-सा
कोई जोड़ न पाता है

अगर छुपे हैं माँ के आँचल
स्वर्ग न कुछ भी होता है
माँ की ममता के आगे तो,
सारा जग भी छोटा है

Saturday 24 April 2010


माँ है
तो लोरी है। शगुन है
माँ है
तो गीत है। उत्सव है
माँ है
तो मंदिर है। मोक्ष है
माँ है
तो मुमकिन है शहंशाह होना,
माँ के आँचल से बड़ा
दुनिया में कोई साम्राज्य नहीं।


माँ और भगवान !


मैं अपने छोटे मुख कैसे करूँ तेरा गुणगान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान

माता कौशल्या के घर में जन्म राम ने पाया
ठुमक-ठुमक आँगन में चलकर सबका हृदय जुड़ाया
पुत्र प्रेम में थे निमग्न कौशल्या माँ के प्राण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान

दे मातृत्व देवकी को यसुदा की गोद सुहाई
ले लकुटी वन-वन भटके गोचारण कियो कन्हाई
सारे ब्रजमंडल में गूँजी थी वंशी की तान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान

तेरी समता में तू ही है मिले न उपमा कोई
तू न कभी निज सुत से रूठी मृदुता अमित समोई
लाड़-प्यार से सदा सिखाया तूने सच्चा ज्ञान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान

कभी न विचलित हुई रही सेवा में भूखी प्यासी
समझ पुत्र को रुग्ण मनौती मानी रही उपासी
प्रेमामृत नित पिला पिलाकर किया सतत कल्याण
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान

'विकल' न होने दिया पुत्र को कभी न हिम्मत हारी
सदय अदालत है सुत हित में सुख-दुख में महतारी
काँटों पर चलकर भी तूने दिया अभय का दान
माँ तेरी समता में फीका-सा लगता भगवान


नमन में मन !



आज फिर
हरसिंगार झरते हैं
माँ के आशीष रूप धरते हैं
पुलक पुलक
उठता है तन
शाश्वत यह कैसा बंधन!
नमन में झुकता है मन-
नमन में मन!

थिरकते हैं
सांझ की गहराइयों में
तुम्हारी पायलों के स्वर
नज़र आता है चेहरा
सुकोमल अप्सरा-सा
उठा कर बाँह
उँगलियों से दिखाती राह
सितारों से भरा आँगन
नमन में मन!

लहरता है
सुहानी-सी उषा में
तुम्हारा रेशमी आँचल
हवा के संग
बुन रहा वात्सल्य का कंबल
सुबह की घाटियों में
प्यार का संबल
सुरीली बीन सा मौसम
नमन में मन!

बसी हो माँ!
समय के हर सफर में
सुबह-सी शाम-सी
दिन में - बिखरती रौशनी-सी
दिशाओं में-
मधुर मकरंद-सी
दूर हो फिर भी
महक उठता है जीवन
नमन में मन!


तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन !


तुम्ही मिटाओ मेरी उलझन
कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
कोई नहीं सृष्टि में तुम-सा
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।
ब्रह्मा तो केवल रचता है
तुम तो पालन भी करती हो
शिव हरते तो सब हर लेते
तुम चुन-चुन पीड़ा हरती हो
किसे सामने खड़ा करूँ मैं
और कहूँ फिर तुम ऐसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।

ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिना सूखे
सारे देव भक्ति के भूखे
लगते हैं तेरी तुलना में
ममता बिन सब रुखे-रुखे
पूजा करे सताए कोई
सब के लिए एक जैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।

कितनी गहरी है अदभुत-सी
तेरी यह करुणा की गागर
जाने क्यों छोटा लगता है
तेरे आगे करुणा-सागर
जाकी रही भावना जैसी
मूरत देखी तिन्ह तैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसै हो।।

मेरी लघु आकुलता से ही
कितनी व्याकुल हो जाती हो
मुझे तृप्त करने के सुख में
तुम भूखी ही सो जाती हो।
सब जग बदला मैं भी बदला
तुम तो वैसी की वैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।

तुम से तन मन जीवन पाया
तुमने ही चलना सिखलाया
पर देखो मेरी कृतघ्नता
काम तुम्हारे कभी न आया
क्यों करती हो क्षमा हमेशा
तुम भी तो जाने कैसी हो।
माँ तुम बिलकुल माँ जैसी हो।।

माँ की याद !


जाड़े की जब धूप सुनहरी
अंगना में छा जाती है
बगिया की माटी में तुलसी
जब औंचक उग आती है
माँ की याद दिलाती है

हो अज़ान या गूँज शंख की
जब मुझसे टकराती है
पाँवों तले पड़ी पुस्तक की
चीख हृदय में आती है
माँ की याद दिलाती है

कटे पेड़ पर भी हरियाली
जब उगने को आती है
कटी डाल भी जब कातिल का
चूल्हा रोज़ जलाती है
माँ की याद दिलाती है

अदहन रखती कोई औरत
नन्हों से घिर जाती है
अपनी थाली देकर जब भी
उनकी भूख मिटाती है
माँ की याद दिलाती है

सुख में चाहे याद न हो, पर
चोट कोई जब आती है
सूरज के जाते ही कोई
दीपशिखा जल जाती है
माँ की याद दिलाती है

माँ तू है !


कानों में मधुर
राग रागिनी
खिलखिलाती झनक
जीवन सफ़र की
अंतरंग सहेली
माँ तू है!

आँखों में बसी
रूप रोशनी
मरहम-सी छुवन
कड़ी धूप में
छाँव शीतल
माँ तू है!

खुशबू-सी पावन
मुस्कुराता गगन
साए में दर्द के
हँसने की लगन
सुलझी पहेली
माँ तू है!

एक मीठा स्वाद
सुंदर अहसास
डगमगाते क्षणों में
स्थिर विश्वास
सागर अथाह
माँ तू है!

अंधियारी रातों में !




अंधियारी रातों में मुझको
थपकी देकर कभी सुलाती
कभी प्यार से मुझे चूमती
कभी डाँटकर पास बुलाती

कभी आँख के आँसू मेरे
आँचल से पोंछा करती वो
सपनों के झूलों में अक्सर
धीरे-धीरे मुझे झुलाती

सब दुनिया से रूठ रपटकर
जब मैं बेमन से सो जाती
हौले से वो चादर खींचे
अपने सीने मुझे लगाती

माँ : एक याद


माँ!
याद तो आता नहीं
तुम्हारा
गोदी में वो मुझे झुलाना
दूध का अमृतरस चखाना
झुनझुने से मेरा दिल बहलाना
लोरी का वो गुनगुनाना
माथे को प्यार से चूमना
गुदगुदी से हँस हँस हँसाना
उँगली पकड़ चलना सिखाना

पर
याद है, माँ मुझे
हाथ में उँगली थामें लिखवाना
खून पसीने से मेरे जीवन को सींचना
मुश्किलों में हौसले का बँधाना
प्यार में आँसुओं का छलकना
गम में रोऊँ तो सहलाना
आने चाहे तुफ़ानों को रोक लेना
अंधेरे में रोशनी का दिखलाना
पास ना रहूँ, तो याद में रोना

और फिर वो पल
जब-
माँ बेटी का रिश्ता बना दोस्ताना
माँ के इस प्यार की बेल का
चढ़ते ही जाना
इंद्रधनुषी रंग में जीवन को रंग देना
तुम्हारी हँसी में दुनिया पा जाना

जीवन की है यह ज्योति
जलती रहे निरंतर
आशीश रहे सदा माँ का
असीम है माँ का प्यार!

स्नेहपूर्ण स्पर्श माँ !


माँ तुम्हारा स्नेहपूर्ण स्पर्श
अब भी सहलाता है मेरे माथे को
तुम्हारी करुणा से भरी आँखें
अब भी झुकती हैं मेरे चेहरे पर
जीवन की खूंटी पर
उदासी का थैला टाँगते
अब भी कानों में पड़ता है
तुम्हारा स्वर
कितना थक गई हो बेटी
और तुम्हारे निर्बल हाथों को मैं
महसूस करती हूँ अपनी पीठ पर
माँ
क्या तुम अब सचमुच नहीं हो
नहीं,
मेरी आस्था, मेरा विश्वास, मेरी आशा
सब यह कहते हैं कि माँ तुम हौ
मेरी आँखों के दिपते उजास में
मेरे कंठ के माधुर्य में
चूल्हे की गुनगुनी भोर में
दरवाज़े की सांकल में
मीरा और सूर के पदों में
मानस की चौपाई में
माँ
मेरे चारों ओर घूमती यह धरती
तुम्हारा ही तो विस्तार है।

वो है मेरी माँ !


मेरे सर्वस्व की पहचान
अपने आँचल की दे छाँव
ममता की वो लोरी गाती
मेरे सपनों को सहलाती
गाती रहती, मुस्कराती जो
वो है मेरी माँ।

प्यार समेटे सीने में जो
सागर सारा अश्कों में जो
हर आहट पर मुड़ आती जो
वो है मेरी माँ।

दुख मेरे को समेट जाती
सुख की खुशबू बिखेर जाती
ममता की रस बरसाती जो
वो है मेरी माँ।

Saturday 17 April 2010

मेरी जिन्दगी मेरी माँ है !


जिन्दगी की तपती धूप में एक ठंडा साया पाया है मैंने,
जब खोली आँख तो अपनी माँ को मुस्कराता हुआ पाया है मैंने,

जब भी माँ का नाम लिया,ओश का बेशुमार प्यार पाया है मैंने,
जब कोई दर्द महसूस हुआ, जब कोई मुश्किल आई,

अपने पहलों में अपनी माँ को पाया है मैंने,
जागती रही वो रात भर मेरे लिए,जाने कितनी रातें,

उससे जगाया है मैंने,
जिन्दगी के हर मोड़ पर, जब हुई गुमराह मैं,

इसकी हिदायत पर, पकड़ ली सीधी राह मैंने,
जिसकी दुआ से हर मुसीबत लौट जाये,

ऐसा फरिस्ता पाया है मैंने,
मेरी हर फ़िक्र को जानने वाली,

मेरे जज्बातों को पहचानने वाली,
मेरी जिन्दगी सिर्फ मेरी माँ है,इसी के लिए तो,

इस जिन्दगी की शमा जला राखी है मैंने।

Thursday 15 April 2010

मै सबके बीच अकेली थी !


मै रोई माँ काम छोड़कर आई मुझको उठा लिया,
झाड-पोछकर चूम-चूम गीले गालोंको सुखा दिया,

दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र-नीर युत दमक उठे,
धुलि हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे,

वह सुख का साम्राज्य छोड़कर मै मतवाली बड़ी हुई,
लुटी हुई, कुछ ठगी हुई सी दौड़ द्वार पर कड़ी हुई,

लाजभरी आँखे उमंग मेरे मन में रंगीली थी,
तान रसीली थी कानो में चंचल छैन छबीली थी,

दिल में एक चुभन सी भी थी यह दुनिया अलबेली थी,
मन में एक पहेली थी, मै सबके बीच अकेली थी।

Sunday 14 March 2010

माँ के लिए कविता !

माँ तू कितनी अच्छी है !




तुम चली गयी दुसरे शहर,
उसने बात को समझा.
व्यस्त हो तुम, भूल गयी रोज एक फ़ोन करना,
उसने बुरा नहीं माना.

अपनी तकलीफ पर उसने आंसू बहाए अकेले,
जब तुम्हे तकलीफ हुई, वो रोई तुम्हारे साथ.
जब तुमने कहा," माँ, यह जरूरी है ".
उसने दुआ की तुम्हारे लिए |