माँ शब्द उच्चारते ही लबखुल जाते हैं, मानो कह रहे हों, लो दिल की दरीचे खुल गए , अब भावनाओ की गांठे खोल दो, बहने दो मन को माँ जो सामने है |
Friday 5 June 2009
प्यारो से परेशानी कैसी ?
वह एक युवा माँ थी| उसके होंठो पर हँसी तैरती रहती थी और आँखों में मुस्कान नज़र आती थी| दो छोटी परछाइयां उसके आगे-पीछे नाचती रहती थी| वह जहा भी जाती, ये परछाईया उसके साथ रहतीं| उसका पल्लू पकड़े-पकड़े, उसकी कुर्सी पर झूलते हुए, कभी आगे, कभी पीछे, मटरगश्ती करते| दो चिपकी परछाइयां| किसी ने उनसे पूछा, "क्या तुम्हे खीझ नही होती, चिढ नही मचती? हर दिन तुम्हारे ये दो पुछल्ले तुम्हारे रास्ते में आते रहते है|"
वह हँसी और उसने अपने सुंदर से चेहरे पर झंकार के भाव बनाए| फ़िर उसने जो शब्द कहे, वह सुनने वाले को हमेशा याद रहे| शायद आप भी उन लफ्जो को भूल न पायेंगे| उस युवा माँ ने कहा, "ऐसी नन्ही परियां होना अच्छी बात है, जो आपके साथ दौडे, जब आप खुश हों, तो वे हँसे, जब आप गुनगुनाये तो साथ में वो भी गुनगुन करे| खीझने का तो सवाल ही नही उठता, क्योंकि आपके पास ऐसी परछाइयां तभी हो सकती है, जब आपकी जिन्दगी सूरज की तपन तले हो|"
Thursday 4 June 2009
माँ की तस्वीर !
घर में माँ की कोई तस्वीर नही
जब भी तस्वीर खिचवाने का मौका आता है
माँ घर में खोई हुई किसी चीज को ढूंढ रही होती है
या लकड़ी घास और पानी लेने गई होती है
जंगल में उसे एक बार बाघ भी मिला
पर वह डरी नही
उसने बाघ को भगाया घास काटी घर आकर
आग जलाई और सबके लिए खाना पकाया
मई कभी घास या लकड़ी लाने जंगल नही गया
कभी आग नही जलाई
मई अक्सर एक जमाने से चली आ रही
पुरानी नक्काशीदार कुर्सी पर बैठा रहा
जिस पर बैठ कर तस्वीरे खिचवाई जाती है
माँ के चेहरे पर मुझे दिखाई देती है
एक जंगल की तस्वीर लकड़ी घास और
पानी की तस्वीर खोई हुई एक चीज की तस्वीर|
हिसाब - किताब !
न ही इस बात की डींग हांके की मैंने माँ-बाप के लिए क्या-क्या नही कर दिया| उनके प्यार और परवाह का कोई मोल नही है...
एक छोटा बच्चा बहुत तेजी के साथ रसोईघर में पहुँचा| माँ उस समय खाना बना रही थी| बच्चे ने एक कागज़ थमाया, जिसमे उसने कुछ हिसाब-किताब किया था| माँ ने पल्लू से हाथ पोछकर पढ़ना सुरु किया| उसमे लिखा था:
- बागीचे में घास की कटाई के लिए : १० रुपए
- अपना कमरा साफ़ करने के लिए : ५ रुपए
- आपके साथ किराने की दूकान तक जाने के लिए : २० रुपए
- छोटे भाई की देखभाल के लिए : १५ रुपए
- कचरा बाहर फेकने के लिए : ५ रुपए
- किताबो को तरतीब से रखने के लिए : ५ रुपए
- मुझे आपसे इस हफ्ते लेने है : कुल ६०
- नौ महीने तुम्हे पेट में रखने के लिए : कोई चार्ज नही
- रात-रात जागकर तुम्हारी देखभाल के लिए : कोई चार्ज नही
- बिना नागा खाना बनाकर तुम्हे खिलाने का : कोई चार्ज नही
- तुम्हारी नाक पोछने, कपड़े धोने के लिए : कोई चार्ज नही
- तुम्हारे खिलौनों के लिए : कोई चार्ज नही
- और तुम जोड़ सको, तो मेरे प्यार के लिए : कोई चार्ज नही
ममता तेरे कितने नाम !
भाषा - संबोधन
- अफ्रीकन - मोइदर, माँ
- अरेबिक- अम
- अल्बेनियन- मेमे, नेने, बरिम
- आयरिश- मदेर
- बोरिनयन- माज्का
- फ्रेंच -मिअर, ममन
- जर्मन- मदर
- हिन्दी- माँ, माजी, माता
- मंगोलियन - इ़ह
- उर्दू -अम्मी
- इंग्लिश- मदर, मम्मी, मॉम
- इटालियन- माद्रे, मम्मा
- पुर्तगाली- माई
- बेलारूसियन- मैत्का
- सर्बियन- मजका
- ग्रीक- मन
- हवालियन- मैकुअहिन
- हंगेरियन-अन्या, फु
- इन्दोनेशियन- इन्डक, इबु
- चेचेन- नना
- जापानीज- ओकासन, हाहा
- लैटिन- मेटर
- पोलिश- मात्का,ममा
- रोमेनियन- ममा, माइका
- रशियन- मैट
- स्वीडिश- ममा, मोर, मोर्सा
- तुर्किश-अन्ने, अना, वालिदे
- यूक्रेनियन- माती |
Saturday 16 May 2009
ये है माँ..
तब कहीं जा कर, ज़रा थोड़ा सुकूँ पाती है माँ।
फिक्र में बच्चों की कुछ ऐसी घुल जाती है माँ,
नौजवाँ हो कर के भी, बूढ़ी नज़र आती है माँ।
रूह के रिश्तों की ये गहराइयाँ तो देखिये,
चोट लगती है हमारे और चिल्लाती है माँ।
कब ज़रूरत हो मेरी बच्चों को इतना सोच कर,
जागती रहती हैं आँखें और सो जात है माँ।
चाहे हम खुशियों में माँ को भूल जायें दोस्तों,
जब मुसीबत सर पे आ जाए, तो याद आती है माँ।
लौट कर सफर से वापस जब कभी आते हैं हम,
डाल कर बाहें गले में सर को सहलाती है माँ।
हो नही सकता कभी एहसान है उसका अदा,
मरते मरते भी दुआ जीने की दे जाती है माँ।
मरते दम बच्चा अगर आ पाये न परदेस से,
अपनी दोनो पुतलियाँ चौखट पे धर जाती है माँ।
प्यार कहते है किसे और ममता क्या चीज है,
ये तो उन बच्चों से पूँछो, जिनकी मर जाती है माँ।
माँ की याद..
कहीं से मां की याद दिल को छूने चली आई हैं
वो आंचल से उसका मुंह पोछना और भाग कर गोदी मे उठाना
रसोई से आती खुशबु आज फिर मुंह मी पानी ले आई है
बसा लिया है अपना एक नया संसार
बन गई हूं मैं खुद एक का अवतार
फिर भी न जाने क्यों आज मन उछल रहा है
बन जाऊं मै फिर से नादान्
सोचती हूं, है वो मीलों दूर बुनती कढाई अपने कमरे मे
नाक से फिसलती ऍनक की परवाह किये बिना
पर जब सुनेगी कि रो रही है उसकी बेटी
फट से कहेगी उठकर,"बस कर रोना अब तो हो गई है बडी"
फिर प्यार से ले लेगी अपनी बाहों मे मुझको
एक एह्सास दिला देगी खुदाई का इस दुनियां मे.
जाडे की नर्म धूप की तरह आगोश मे ले लिया उसने
इस ख्याल से ही रुक गये आंसू
और खिल उठी मुस्कान मेरे होठों पर..
माँ की परिभाषा
माँ जो सन्स्कारो की पूर्ति है
माँ जो धरती का स्वर्ग है
माँ जो साक्षात ईश्वर है
माँ जो मीठी मिठाई है
माँ हर दर्द की दवाई है
माँ बुराई के लिए जहर है
माँ जिसका स्पर्श ही अमृत है
माँ जिसके हाथो मे शक्ति है
माँ जो प्रेम की भक्ति है
माँ जो खुली किताब है
माँ जिसके पास हर जवाब है
माँ जो सागर से भी गहरी है
माँ सूर की साहित्य लहरी है
माँ राम चरित मानस है
माँ जो सूखे मे पावस है
माँ जो वैदो की वाणी है
माँ गन्गा ,यमुना,सरस्वती
की त्रिवेणी है
माँ लक्ष्मी गौरी वाग्देवी है
माँ जो स्वयम सेवी है
माँ ही सभ्याचार है
माँ ही उच्च विचार है
माँ ब्रह्मा , विष्णु ,महेश है
माँ के बाद कुछ न शेष है
माँ धरती ,माँ आकाश है
माँ फैला हुआ प्रकाश है
माँ सत्य ,शिव ,सुन्दर है
माँ ही मन मन्दिर है
माँ श्रद्धा है ,माँ विश्वास है
माँ ही एकमात्र आस है
माँ ही सबसे बडी आशा है
माँ की नही कोई परिभाषा है
माँ तुम्हारी नही कोई परिभाषा है
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Wednesday 13 May 2009
माँ
फिर भी तुम हरदम पास
जब भी
मै कभी हुई उदास
न जाने कैसे?
समझे तुमने मेरे जजबात
करवाया
हर पल अपना अहसास
और
याद हर वो बात दिलाई
जब
मुझे दी थी घर से विदाई
तेरा
हर शब्द गूँजता है
कानो मे सन्गीत बनकर
जब हुई
जरा सी भी दुविधा
दिया साथ तुमने मीत बनकर
दुनिया
तो बहुत देखी
पर तुम जैसा कोई न देखा
तुम
माँ हो मेरी
कितनी अच्छी मेरी भाग्य-रेखा
माँ का रूप...
उसके लिए दे देंगे हम जाँ,
हमको मिलता जीवन उनसे,
कदमो में है स्वर्ग बसा,
संस्कार वह हमे सिखलाती,
अच्छा-बुरा हमे बतलाती,
हमारी गलतियों को सुधारती,
प्यार वह हम पर बरसाती,
तबियत अगर हो जाये खराब,
रात-रात भर जागते रहना,
माँ बिन जीवन है अधुरा,
खाली-खाली सूना सूना,
खाना पहले हमे खिलाती,
बाद में वह खुद है खाती,
हमारी ख़ुशी में खुस हो जाती,
दुःख में हमारे आंसू बहाती,
कितने खुशनसीब है हम,
पास है हमारे माँ,
होते बदनसीब वो कितने,
जिनके पास न होती माँ...
Saturday 18 April 2009
पर तरस गई हूँ !
तेरी
उँगलिओ के स्पर्श को
जो चलती थी मेरे बालो मे
तेरा
वो चुम्बन
जो अकसर करती थी
तुम मेरे गालो पे
वो
स्वादिष्ट पकवान
जिसका स्वाद
नही पहचाना मैने इतने सालो मे
वो मीठी सी झिडकी
वो प्यारी सी लोरी
वो रूठना - मनाना
और कभी - कभी
तेरा सजा सुनाना
वो चेहरे पे झूठा गुस्सा
वो दूध का गिलास
जो लेकर आती तुम मेरे पास
मैने पिया कभी आँखे बन्द कर
कभी गिराया तेरी आँखे चुराकर
आज कोई नही पूछता ऐसे
???????????????????
तुम मुझे कभी प्यार से
कभी डाँट कर खिलाती थी जैसे
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नि:शब्द है
वो सुकून
जो मिलता है
माँ की गोदि मे
सर रख कर सोने मे
वो अश्रु
जो बहते है
माँ के सीने से
चिपक कर रोने मे
वो भाव
जो बह जाते है अपने ही आप
वो शान्ति
जब होता है ममता से मिलाप
वो सुख
जो हर लेता है
सारी पीडा और उलझन
वो आनन्द
जिसमे स्वच्छ
हो जाता है मन
Friday 10 April 2009
कितनी बदल गयी तुम माँ !
- माँ बदल रही है. अपने बच्चे से तो वह आज भी पहले जितना ही प्यार करती है, पर अब हर काम को पूरा करने के लिए वह पापा का इन्तजार नहीं करती. माँ ऑफिस जाने लगी है. वह कंपनी चलने लगी है और बच्चे के कदम से कदम मिलाकर चलना भी उसने सीख लिया है..
- जिस छण बच्चे का जन्म होता है, उसी समय माँ भी जन्म लेती है. उससे पहले माँ का अस्तित्व नहीं होता. महिला का अस्तित्व तो होता है,पर माँ का नहीं. माँ बिलकुल नयी होती है.
- इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, माँ जब गुस्से में होती है तो रो देती है.
- माँ अपने विचारो में भी अकेली नहीं होती. माँ को हमेशा दो बार सोचना पड़ता है, एक बार अपने लिए और दूसरी बार अपने बच्चे के लिए.
- वह माँ खुशकिश्मत है, जिसकी अपनी पह्व्हान है. जिसके नेक कामो से लोग उससे जानती है. पर सबसे खुशकिश्मत तो वह माँ है, जिसकी औलाद उसका नाम दुनियाभर में रोशन करे.