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Friday 7 May 2010

माँ की आँखों से दुनिया को देखना !

मेरी माँ की सिर्फ एक ही आँख थी और इसीलिए मैं उनसे बेहद नफ़रत करता था | वो फुटपाथ पर एक छोटी सी दुकान चलाती थी | उनके साथ होने पर मुझे शर्मिन्दगी महसूस होती थी | एक बार वो मेरे स्कूल आई और मै फिर से बहुत शर्मिंदा हुआ | वो मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है ? अगले दिन स्कूल में सबने मेरा बहुत मजाक उड़ाया |

मैं चाहता था मेरी माँ इस दुनिया से गायब हो जाये | मैंने उनसे कहा, 'माँ तुम्हारी दूसरी आँख क्यों नहीं है? तुम्हारी वजह से हर कोई मेरा मजाक उड़ाता है | तुम मर क्यों नहीं जाती ?' माँ ने कुछ नहीं कहा | पर, मैंने उसी पल तय कर लिया कि बड़ा होकर सफल आदमी बनूँगा ताकि मुझे अपनी एक आँख वाली माँ और इस गरीबी से छुटकारा मिल जाये |

उसके बाद मैंने म्हणत से पढाई की | माँ को छोड़कर बड़े शहर आ गया | यूनिविर्सिटी की डिग्री ली | शादी की | अपना घर ख़रीदा | बच्चे हुए | और मै सफल व्यक्ति बन गया | मुझे अपना नया जीवन इसलिए भी पसंद था क्योंकि यहाँ माँ से जुडी कोई भी याद नहीं थी | मेरी खुशियाँ दिन-ब-दिन बड़ी हो रही थी, तभी अचानक मैंने कुछ ऐसा देखा जिसकी कल्पना भी नहीं की थी | सामने मेरी माँ खड़ी थी, आज भी अपनी एक आँख के साथ | मुझे लगा मेरी कि मेरी पूरी दुनिया फिर से बिखर रही है | मैंने उनसे पूछा, 'आप कौन हो? मै आपको नहीं जानता | यहाँ आने कि हिम्मत कैसे हुई? तुरंत मेरे घर से बाहर निकल जाओ |' और माँ ने जवाब दिया, 'माफ़ करना, लगता है गलत पते पर आ गयी हूँ |' वो चली गयी और मै यह सोचकर खुश हो गया कि उन्होंने मुझे पहचाना नहीं |
एक दिन स्कूल री-यूनियन की चिट्ठी मेरे घर पहुची और मैं अपने पुराने शहर पहुँच गया | पता नहीं मन में क्या आया कि मैं अपने पुराने घर चला गया | वहां माँ जमीन मर मृत पड़ी थी | मेरे आँख से एक बूँद आंसू तक नहीं गिरा | उनके हाथ में एक कागज़ का टुकड़ा था... वो मेरे नाम उनकी पहली और आखिरी चिट्ठी थी |

उन्होंने लिखा था :

मेरे बेटे...
मुझे लगता है मैंने अपनी जिंदगी जी ली है | मै अब तुम्हारे घर कभी नहीं आउंगी... पर क्या यह आशा करना कि तुम कभी-कभार मुझसे मिलने आ जाओ... गलत है ? मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है | मुझे माफ़ करना कि मेरी एक आँख कि वजह से तुम्हे पूरी जिंदगी शर्मिन्दगी झेलनी पड़ी | जब तुम छोटे थे, तो एक दुर्घटना में तुम्हारी एक आँख चली गयी थी | एक माँ के रूप में मैं यह नहीं देख सकती थी कि तुम एक आँख के साथ बड़े हो, इसीलिए मैंने अपनी एक आँख तुम्हे दे दी | मुझे इस बात का गर्व था कि मेरा बेटा मेरी उस आँख कि मदद से पूरी दुनिया के नए आयाम देख पा रहा है | मेरी तो पूरी दुनिया ही तुमसे है |

चिट्ठी पढ़ कर मेरी दुनिया बिखर गयी | और मैं उसके लिए पहली बार रोया जिसने अपनी जिंदगी मेरे नाम कर दी... मेरी माँ |

Wednesday 5 May 2010

माँ इतनी खाश क्यों है ?


बारिश में मै जब घर वापस आयी....

भाई ने पूछा, "छाता लेकर क्यों नहीं गयी थे?

दीदी ने सलाह दी, "बारिश रुकने का इन्तजार करती"

पापा ने गुस्से में बोला, "जब ठण्ड लग जाएगी तब मालुम पड़ेगा"

लेकिन

मेरी माँ मेरे बाल सुखाती हुई बोली, "ये बारिश भी न, थोडा देर रुक नहीं सकती थी जब मेरी बेटी घर आ रही थी |

Sunday 2 May 2010

माँ मुझे डर लगता है !


कल रात मेरे बिस्तर पर मुझे एक आहट ने चौंका दिया,
फिर एक नर्म हवा का झोंका मेरी परेशानी को छु गया,
आँख खुली तो माँ को देखा, कुछ हिलते लब कुछ फडफडाते लब,
मैंने धीरे से मुस्करा दिया,
माँ आज भी उठ कर रातों में मेरी परेशानी को चूमती है,
और अपने हिस्से की भी सब दुआएं मुझ पर फूंका करती है,
बस इतना याद है मुझे के,
मैंने बचपन में बस एक बार कहा था,
माँ मुझे डर लगता है.

माँ और मैं !



  • एक हस्ती है जो जान है मेरी, जो आन से बढ़कर मान है मेरी, खुदा हुक्म दे तो कर दूँ सजदा उसे, क्योकि वो कोई और नहीं माँ है मेरी.
  • एक दिन माँ से पूछा के माँ के मरने के बाद दुआ कौन करेगा? तो माँ बोली.. समंदर सूखने के बाद भी रेत में नमी रह जाती है.
  • माँ तेरी याद सताती है मेरे पास आ जाओ, थक गयी हूँ मुझे अपने आँचल में सुलाओ, उंगलिया अपनी फेर कर बालों में मेरे, एक बार फिर से बचपन की लोरियां सुनाओ.
  • फूलों सी सुन्दर है मेरी माँ, सब कुछ है मेरी माँ में, नहीं कुछ भी ज़रूरत मुझे, गम,दर्द दे या ज़हर पिला दे, मैं उसको पूजती हूँ, वो ही मेरी इबादत है.
  • माँ से रिश्ता ऐसा बनाया जाये, जिसको निगाहों में बैठाया जाये, रहे उसका मेरा रिश्ता कुछ ऐसा की, वो अगर उदास हो तो हमसे भी मुस्कराया न जाये.
  • मन की बात जान ले जो, आँखों से पढ़ ले जो, दर्द हो चाहे ख़ुशी, आंसू की पहचान कर ले जो, वो हस्ती जो बेपनाह प्यार करे, 'माँ' ही तो है वो जो बच्चों के लिए जिए.
  • दास्ताँ मेरे लाड़ प्यार की बस, एक हस्ती क इर्द गिर्द घुमती है, प्यार जन्नत से इसलिए है मुझे, क्योकि ये मेरे माँ के कदम चूमती है.
  • जब हम बोलना नहीं जानते थे, तब हमारे बोले बिना माँ हमारी बातों को समझ जाती थी, और आज , हम हर बात पर कहते है, छोड़ो माँ आप नहीं समझोगी.

माँ की व्यथा !

मेरी व्यथा अनकही सही अनजानी नहीं है, मुझ जैसी हज़ारों नारियों की कहानी यही है,


जन्म से ही खुद को अबला जाना,
जीवन के हर मोड़ पर परिजनों ने ही हेय माना,

थी कितनी प्रफुल्लित मैं उस अनूठे अहसास से,
रच बस रहा था जब एक नन्हा अस्तित्व मेरी सांसों की तार में,
प्रकृति के हर स्वर में नया संगीत सुन रही थी,
अपनी ही धुन में न जाने कितने स्वप्न बुन रही थी,

लम्बी अमावस के बाद पूर्णिमा का चाँद आया,
एक नन्हीं सी कली ने मेरे आंगन को सजाया,

आए सभी मित्रगण, सम्बन्धी कुछ के चहरे थे लटके,
तो कुछ के नेत्रों में आंसू थे अटके,
भांति भांति से सभी समझाते,
कभी देते सांत्वना तो कभी पीठ थपथपाते,

कुछ ने तो दबे शब्दों में यह भी कह डाला,
घबराओ नहीं, खुलेगा कभी तुम्हारी किस्मत का भी ताला,

लुप्त हुआ गौरव खो गया आनन्द,
अनजानी पीड़ा से यह सोचकर बोझिल हुआ मन,
क्या हुआ अपराध जो ये सब मुझे कोसते हैं,
दबे शब्दों में, मन की कटुता में मिश्री घोलते हैं,

काश! ममता में होता साहस, माँ की व्यथा को शब्द मिल जाते,
चीखकर मेरी नन्हीं कली का सबसे परिचय यूँ कराते,

न इसे हेय, न अबला जानो 'खिलने दो खुशबू पहचानो' |