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Wednesday 13 May 2009

माँ

रास्तो की दूरियाँ
फिर भी तुम हरदम पास

जब भी
मै कभी हुई उदास

न जाने कैसे?
समझे तुमने मेरे जजबात

करवाया
हर पल अपना अहसास

और
याद हर वो बात दिलाई

जब
मुझे दी थी घर से विदाई

तेरा
हर शब्द गूँजता है
कानो मे सन्गीत बनकर

जब हुई
जरा सी भी दुविधा
दिया साथ तुमने मीत बनकर

दुनिया
तो बहुत देखी
पर तुम जैसा कोई न देखा

तुम
माँ हो मेरी
कितनी अच्छी मेरी भाग्य-रेखा

1 comment:

  1. निकिता बेटे,
    खुश रहो
    माँ के लिए बेहद भावनात्मक अभिव्यक्ति दी है आपने इस कविता के माध्यम से,
    हमें आप जैसे संस्कारित विचारों वाले युवा वर्ग की ही आवश्यकता है.
    आपके विचार जितने सुन्दर होंगे आपका भविष्य भी उतना परिपक्व और आदर्श होगा
    सदा अच्छा लिखती रहो .
    - विजय

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