माँ अपने आलोक निखारो, नर को नरक -त्रास से वारो।
पल्लव में रस , सुरभि सुमन में, फल में दल करलव उपवन में,
लाओ चारु चमन चितवन में, स्वर्ग धरा के कर तुम धारो ।
- निराला जी !
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