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Wednesday 24 November 2010

कैसी होती है माँ !

क्या कहूँ माँ कैसी होती है ,
आँखों में जिसके सारा आसमान होता है ,
और क़दमों में जन्नत होती है .

खुद के दुख को ख़ुशी समझ लेती है .
छुपाये रखती है खुद के दर्द और ज़ख्मों को .
और कोई शिकवा भी है तो ज़ाहिर नहीं करती .
हमारे दर्द में खुद का दामन आंसुओं से भिगोती है .

बच्चों की खातिर बुराई सारे जहाँ से मोल लेती है .
उसकी ममता और मोहब्बत को क्या कहें .
उनकी जान तो औलाद के खातिर , क़ुरबानी के लिए तैयार रखती है .

औलाद कैसी भी हो माँ तो माँ आखिर होती है .
चाहे फिर प्यार करे या डांटे .
अगर मारती भी है , तो चोट उसी के दिल पर लगती है .
ऐसी होती है माँ ,जिसको करते हैं हम हर जनम सलाम .