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Friday 10 April 2009

कितनी बदल गयी तुम माँ !

माँ ! इस एक शब्द में प्यार, परवरिश , प्रेरणा का सागर समाया हुआ है. यह सागर सदियों से लहराता रहा है और आगे भी लहराता रहेगा. पर वक़्त के साथ लहरों की लय में भी बदलाव आया है. बदलते वक़्त ने बहुत कुछ बदल दिया है. समाज बदल गया, बच्चे की रूचियां और प्राथमिकताएं बदल गयी, तो ऐसे में माँ अपने को बिना बदले कैसे सब कुछ संभल सकती है. मात्र, माँ, अम्मा, मम्मी से मॉम तक सिर्फ संबोधन ही नहीं, माँ की भूमिका भी काफी बदल गयी है.

  • माँ बदल रही है. अपने बच्चे से तो वह आज भी पहले जितना ही प्यार करती है, पर अब हर काम को पूरा करने के लिए वह पापा का इन्तजार नहीं करती. माँ ऑफिस जाने लगी है. वह कंपनी चलने लगी है और बच्चे के कदम से कदम मिलाकर चलना भी उसने सीख लिया है..
  • जिस छण बच्चे का जन्म होता है, उसी समय माँ भी जन्म लेती है. उससे पहले माँ का अस्तित्व नहीं होता. महिला का अस्तित्व तो होता है,पर माँ का नहीं. माँ बिलकुल नयी होती है.
  • इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है, माँ जब गुस्से में होती है तो रो देती है.
  • माँ अपने विचारो में भी अकेली नहीं होती. माँ को हमेशा दो बार सोचना पड़ता है, एक बार अपने लिए और दूसरी बार अपने बच्चे के लिए.
  • वह माँ खुशकिश्मत है, जिसकी अपनी पह्व्हान है. जिसके नेक कामो से लोग उससे जानती है. पर सबसे खुशकिश्मत तो वह माँ है, जिसकी औलाद उसका नाम दुनियाभर में रोशन करे.

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