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Thursday 15 April 2010

मै सबके बीच अकेली थी !


मै रोई माँ काम छोड़कर आई मुझको उठा लिया,
झाड-पोछकर चूम-चूम गीले गालोंको सुखा दिया,

दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र-नीर युत दमक उठे,
धुलि हुई मुस्कान देख कर सबके चेहरे चमक उठे,

वह सुख का साम्राज्य छोड़कर मै मतवाली बड़ी हुई,
लुटी हुई, कुछ ठगी हुई सी दौड़ द्वार पर कड़ी हुई,

लाजभरी आँखे उमंग मेरे मन में रंगीली थी,
तान रसीली थी कानो में चंचल छैन छबीली थी,

दिल में एक चुभन सी भी थी यह दुनिया अलबेली थी,
मन में एक पहेली थी, मै सबके बीच अकेली थी।

2 comments:

  1. लाजभरी आँखे उमंग मेरे मन में रंगीली थी,
    तान रसीली थी कानो में चंचल छैन छबीली थी,
    umra purwa kee thi

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  2. nice nikita ji.... aapke vichaar wakai bahut achche hai...

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